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Pandit For Wedding In Delhi

In Hindu tradition, human life is divided into four ashrams: Brahmacharya, Grihastha, Vanaprastha, and Sanyasa. Of these, the Grihastha ashram is considered the most challenging, as described in ancient scriptures. While individuals in the other ashrams focus on their personal growth, those in Grihastha work not just for themselves, but for others. Living and working for oneself is relatively easy, but living and working for others requires immense dedication and selflessness.

The transition into the Grihastha ashram is marked by the sacred ceremony of Vivah (marriage), which is one of the sixteen important sanskars in human life. As one embarks on this significant journey, understanding the deeper meaning of these rites is crucial. This knowledge is embedded in the various marriage rituals, which must be performed with care and understanding.

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गृहव्याश्रम सब आश्रमों में का आरम्भ विवाह से होता है।

विवाह क्या है?

वैदिक विवाह एक उच्चकोटि का धार्मिक सम्बन्ध है। विवाह शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है-विवाह। ‘वि’ विशेषता का द्योतक है और ‘वाह’ का अर्थ है यान। विवाह एक ऐसा शकट है, जिसमें स्त्री और पुरुष दो पहियों के समान हैं, जिनमें पूर्ण साम्य, सङ्गति और सद्गति का होना आवश्यक है। दूसरे शब्दों में हम यूँ कह सकते हैं-

“जब दो प्राणी प्रेमपूर्वक आकर्षित होकर अपने आत्या, हृदय और शरीर को एक-दूसरे को अर्पित कर देते हैं, तब हम सांसारिक भाषा में उसे विवाह कहते हैं।”

विवाह का एक अर्थ यह भी है कि गृहस्थ के उत्तरदायित्वों को ‘वि’ विशेषरूप से वाह-वहन करना। विवाह के अन्य अर्थ हैं “ले-जाना” और “प्रयत्न करना”। तात्पर्य यह है कि विवाह उस क्रिया का नाम है जिसके द्वारा स्त्री-पुरुष को विशेष रीति से गृहस्थाश्रम में ले जाते हैं अथवा उसमें विशेष प्रयत्न करते हैं।

विवाह किन कुलों के साथ होना चाहिए? महर्षि मनु

कहते हैं-

महान्त्यपि रिचानि गोऽ जाविध्नधान्यतः। स्त्रीसम्बन्धे दशैतानि कुलानि परिवर्जयेत् ॥ हीनक्रियं निश्पुरुषं निश्छन्दो रोमशार्षसम्। क्षययामायाव्यापस्मारिश्वित्रिकुष्ठिकुलानि च ॥

-मनु0
कितने ही समृद्ध कुल हों, तो भी विवाह-सम्बन्ध में निम्न दश कुलों का त्याग कर दे। वे दस कुल ये हैं-१. सत्क्रिया से हीन, २. सत्पुरुयों से रहित, ३. वेदाध्ययन से विमुख, ४. जिस कुल में शरीर पर बड़े-बड़े लोम हों, ५. जिस कुल में बवासीर हो, ६. जिस कुल में राजयक्ष्मा हो, ७. जिस कुल में मन्दाग्रि, ८. मृगी, ९. श्वेतकुष्ठ और १०. गलितकुष्ठ हो, ऐसे कुल की कन्ऱ्या के साथ विवाह न करें, क्योंकि ये रोग और दुर्गुण, विवाह करनेवाले के कुल में भी प्रविष्ट हो जाते हैं। परन्तु आज तो विवाह करते समय चमड़ी और दमड़ी देखी जाती है। डारविन महोदय ने ठीक ही लिखा है
-Man sees with scrupulous care the character and pedigree of his horse, cattle and dogs, before he matches them, but when he comes to his own marriage he rarely or never takes such care.
जिस समय मनुष्य अपने घोड़े, पशु और कुत्तों को मिलाता है तब वह उनके गुण, स्वभाव, बल, कद और नस्ल को बड़ी सावधानी से देखता है, परन्तु जब वह अपने विवाह- सम्बन्ध की ओर आता है तब इस ओर कोई ध्यान नहीं देता अथवा बहुत कम ध्यान देता है।

वैदिक धर्म में वर एवं वधू के गुण, कर्म, स्वभाव का मिलान करने पर बड़ा बल दिया गया है। पाश्चात्य डॉक्टर मैगनस हिर्श फील्ड (Dr. Magnus Hirshfield) ने भी इस विषय में बहुत सुन्दर लिखा है-
Happy marriages are not made in heavens butin the laboratory, both the man and woman should be carefully examined not only with regard to their fitness to marry but whether they are fit to marry each other.
विवाह कितने प्रकार का होता है

ब्राह्म, देव, आर्ष, प्रजापत्य, असुर, गान्धर्व, राक्षस और पिशाच ये विवाह आठ प्रकार के होते हैं। ॥

1- ब्राह्म विवाह –

कन्या के योग्य, सुशील, विद्वान् पुरुष का सत्कार कर के कन्या को वस्त्रादि से अलंकृत करके उत्तम पुरुष को बुला अर्थात् जिसको कन्या ने प्रसन्न’ भी किया हो, उसको कन्या देना वह ब्राहा विवाह कहाता है ॥

2- देव विवाह –

विस्तृत यज्ञ में बड़े बड़े विद्वानों का वरण कर उसमें कर्म करने वाले विद्वान् को वस्त्र आभूषण यादि से कन्या को सुशोभित करके देना, वह देव विवाह ॥

3 आर्ष विवाह –

कुछ भी न ले देकर वर एवं कन्या दोनों की पसंद का प्रसन्नता से पाणिग्रहण होना थार्ष विवाह है।

4 -प्राजापत्य विवाह –

कन्या और वर को यज्ञशाला में विधि करके सब के सामने तुम दोनों मिलके गृहाश्रम के कर्मों को यथावत् करो, ऐसा कहकर दोनों को प्रसन्नतापूर्वक पाणिग्रहण होना वह प्राजापत्य विवाह कहाता है।

यह 4 विवाह ही उत्तम विवाह हैं

5 – आसुर विवाह –

वर की जातिवालों और कन्या को यथाशक्ति धन देके, होम आदि विधि कर कन्या देना, आसुर विवाह कहाता

6 गान्धर्व विवाह

– वर और कन्या की इच्छा से दोनों का संयोग होना और अपने मन में मान लेना कि हम दोनों स्त्री-पुरुष है, यह काम से हुआ गान्धर्व विवाह कहाता है ॥

7- राक्षस विवाह-

हनन, छेदन अर्थात् कन्या के रोकने वालों का विदारण कर क्रोशती, रोती, कांपती और भयभीत हुई कन्या को बलात्कार से हरण करके विवाह करना वह राक्षस अति नीच विवाह है ।।

8- पैशाच विवाह-

जो सोती, पागल हुई वा नशा पीकर उन्मत्त हुई कन्या को एकान्त पाकर दूषित कर देना, यह सब विवाहों में नीच से नीच, महानीच, दुष्ट, अति दुष्ट,पैशाच विवाह है ।।१७।।

ब्राह्म, दैव, आर्ष और प्राजापत्य इन ४ (चार) विवाहों में पाणि- ग्रहण किये हुए स्त्री-पुरुषों से जो सन्तान उत्पन्न होते हैं वे वेदादि विद्या से तेजस्वी, आप्त पुरुषों के सम्मत, अत्युत्तम होते हैं ।।

वे पुत्र वा कन्या सुंदर, रूप, बल,पराक्रम, शुद्ध बुद्धयादि उत्तम गुणयुक्त, बहुधनयुक्त, पुण्यकीर्तिमान् और पूर्ण भोग के भोक्ता, अतिशय, धर्मात्मा होकर 100 (सौ) वर्ष तक जीते हैं।॥

इन चार विवाहों से जो शेष रहे 4 विवाह असुर, गंधर्व, राक्षस और पैशाच, इन चार दुष्ट विवाहों से उत्पन्न सन्तान निंदित कर्मकर्ता, मिथ्यावादी, वेदधर्म के द्वेषी, बड़े-बड़े नीच स्वभाव वाले होते हैं

इस लिए मनुष्यों को योग्य है कि जिन निन्दित विवाहों से नीच प्रजा होती हैं उनका त्याग, और जिन उत्तम विवाहों से उत्तम प्रजा होती हैं उनको करना अत्युत्तम है ॥

उत्कृष्टयाभिरूपाय वराय सदृश्य च।
अप्राप्तमपि तां तस्मै कन्यां दद्याद्विचक्षणः ॥ ॥ काममामरणात्तिष्ठेद् गृहे कन्यत्तुर्मत्यषि।
न चैवैनां प्रयच्छेत्तु गुणहीनाय कर्हिचित् ॥ 2॥
त्रीणि वर्षाणयुदीक्षेत कुमायृ- र्तुमति सति
। ऊर्ध्वन्तु कालादेतस्माद्विन्देत सदृशं पतिम् ॥ 3 ॥

[मनु.अ. 9. 88-90]

प्रश्न – विवाह निकटवासियों से अथवा दूरवासियों से करना चाहिए?

उत्तर – दुहिता दुर्हिता दूरे हित भवतिति ॥ (तु.-निरु.3.4 ॥)

यह निरुक्त का प्रमाण है कि जितना दूर देश में विवाह होगा उतना ही उनको अधिक लाभ होगा ।

विवाह संस्कार की मुख्य विधियाँ-

1- स्वागत विधि
2- मधुपर्क विधि
3- गोदान विधि
4- कन्यादानविधि
5- वस्त्र विधि
6- ऋत्विक् वरण विधि संकल्प
7- वैवाहिक यज्ञ विधि

(क)- प्रधान होम
(ख)- राष्ट्रपभृत होम
(ग)- जया होम
(घ)- अभ्यातन होम
(डं)- आष्टाज्याहुति होम

8- पाणिग्रहण विधि
9- लाजा होम
10-ग्रंथि बंधन
11-सप्तपदी
12-सुमंगली एवं यज्ञ समापन विधि
13- आशीर्वाद

सुमङ्गलीरियं वधूरिमां समेत पश्यत।
सौभाग्यमस्यै दत्वायाथास्तं विरेतन,
ऋ.मं.10, सू.85, मं.33: पार.1,8,9॥

उक्त मंत्र को बोल के कार्यार्थ आये हुए लोगों की ओर अवलोकन करना। और इस समय सब लोग-

ओंम् सौभाग्यमस्तु। ओम् शुभं भवतु॥

उक्त वाक्य से आशीर्वाद देवें और वर-वधू पर फूलों की वर्षा करें.

विवाह हेतु सामान

1. देशी घी 1 किलो.
2. रोली
3. मोली
4. कपूर 1 पैकेट
5. दीपक 1
6. रुई, बत्ती
7. माचिस
8. जौ-100 ग्राम
9. काला तिल 100 ग्रास
10. गूगल 100 ग्राम
11. चावल 100 ग्राम
12. दही 100 ग्राम
13. शहद 1 शीशी
14. खील 500 ग्राम
15. गुलाबी पटका -2
16. वधू की चुन्नी
17. सिंदुर 1 डिब्बी
18. वरमाला-2
19. सिल बट्टा 1
20. गोला 1
21. नारियल 1
22. सूखे मेवा 200 ग्राम
23. खुले फूल 2 किलो.
24. प्रसाद (मिठाई)
25. आम के पत्ते,
26. हवन सामग्री 2 किलो.
27. समिधा (आम की लकड़ी) 5 किलो
28. हवन कुंड
29. चन्दन की 6 समिधायें
30. एक सूप

बर्तन-

कटोरा-1, कटोरी-8, चम्मच 6. परात-1, लोटा-1, प्लेट-6,
1कलश स्टील का दीपक -1
2 घी के बड़े चम्मच,

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