Griha Pravesh Havan Pandit Ji Panchsheel Delhi
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भवन व गृह का शिलान्यास
नवीन भवन, मकान आदि के निर्माण कार्य के शुभारम्भ या शिलान्या के शुभावसर पर अपने सहयोगियों, दार्शनिकों, इष्ट मित्रो व सहयोगियों सहित एकत्र तो होकर ईश्वर का धन्यवाद करना,
यज्ञ विधि –
यज्ञ वेदी में विराजमान समस्त जन आचमन अङ्गस्पर्श करके ईश्वरस्तुति- प्रार्थनोपासना के मन्त्रों के अर्थसहित श्रद्धा पूर्वक पाठ और स्वस्तिवचन, शांति करण उच्चारण और अग्निधान करके विशेष यज्ञ की विधि द्वारा पूर्णाहुति से पूर्व निम्नलिखित मंत्रों से विशेष आहुति दिलावें और अर्थ भी सुनाते जावें।
ओम् विश्वानि देव सवितुर्दुरितानि परसुव। यद् भद्रन्त आ सुव ॥ यजु.
अर्थ-
हे सकल जगत् के उत्पत्तिकर्ता, समग्र ऐश्वर्ययु शुद्ध स्वरूप, सब सुखों के दाता परमेश्वर आप कृपा कर हमारे सम्पूर्ण दुर्गुण-दुर्व्यसन और दुःखों को दूर कर दीजिये। और जो कल्याणकारक गुण-कर्म-स्वभाव और पदार्थ हैं वह सब हमको प्राप्त कीजिये ।
ओम् प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा जातानि परिता बभुव। यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नो अस्तु वयं स्याम पतयो रयिणाम्॥
ऋ.
अर्थ-हे सब प्रजा के स्वामी परमात्मा आपसे भिन्न दूसरा कोई उन इन सब उत्पन्न हुए जड़-चेतनादिकों को नहीं तिरस्कार करता है, अर्थात् आप सर्वोपरि हैं। जिस-जिस पदार्थ की कामनावाले हम लोग भक्ति करें आपका आश्रय लेवें और वाञ्छा करें, उस-उस की कामना हमारी सिद्ध होवे,
जिससे हम लोग धनैश्वयों के स्वामी होवें।
ओम् ऊर्जस्वति पयस्वति पृथिव्यां निमिता मिता। विश्वान्नं बिभ्रति शैलो मा हिंसाःप्रतिगृह्णत:॥
अथर्व.
अर्थ :
हे शाले ! तू आरोग्य, योजना से युक्त एवं धन-धान्य से संकलित दुग्ध, जल आदि से युक्त पृथ्वी पर योजना के अनुसार माप-माप कर बनायी जा रही है। इस प्रकार के अन्नों को धारण करता हुई तू ग्रहण करनेहारों को सदा सुखाद हो।
अब निम्नलिखित तीनों मन्त्रों के उच्चारण के साथ निश्चित स्थान पर तीन बार जल छिड़के-
ओ3म् आपो हिष्ठा मयोभुवस्ता नऽ ऊर्जे दधातन।
महे रणाय चक्षसे ॥
यजुः 36।14।।
ओम् यो वः शिवतमो रसस्तस्य भजायतेह नः। उशतीरिव
मातरः ।। यजुः0 36.16.।
ओम् तस्मा अरंऽगमाम् वो यस्य क्षयाय जिन्वथ। आपो जनयथा च नः ॥
तत्पश्चात निम्न मंत्र बोलकर शिलान्यास अथवा नींव रखावें
ओम् अग्न आ याहि वीतये गुणानो हव्यदातये। नि होता सत्सि बर्हिषि ।। साम0 1.1.
अर्थ : हे सर्व जगत् के निर्माण करनेवाले जगदीश्वर! आप कृपा करके हमारे यज्ञ में अर्थात् ज्ञान-यज्ञरूप ध्यान में आइये, पधारिये । इस यज्ञ में आप ही की स्तुति हो रही है। हमारे एक-मात्र पूज्य और इष्ट आप ही हैं। सब पदाथों और सब शक्तियों के दाता परमेश्वर हमारे हृदय को सुप्रकाशित कीजिये जिससे शुद्ध-बुद्धि और शुभ-विचारों का उदय हो ताकि आपकी कृपा से हे ज्योतिस्वरूप ! हम सदैव यज्ञ-कर्मो का अनुष्ठान करनेवाले हों और सफलता प्राप्त करते रहें। हे स्वामिन्। आइये और हमारे हृदय में विराजिये,
फिर यज्ञ-मण्डप में बैठकर गायत्री मन्त्र के उच्चस्वर सहित पाठ से तीन आहुतियाँ देकर सर्वं वै पूर्णं स्वाहा ३ बार उच्चारण करके पूर्णाहुति दिलावें ।
ईशभजन-प्रार्थना-मंगल के पश्चात्
ओम् सत्य सन्तु यजमानस्य कामः।
ओम् स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः। स्वस्ति नस्ताक्षर्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
ओम् स्वस्ति।
ओम् स्वस्ति।
ओम् स्वस्ति॥
के मन्त्रपाठ-सहित यजमानों पर पुष्प वर्षा करके आशीर्वाद दें,
🙏 हवन का सामान 🙏
1- देसी घी 500 ग्राम
2- जौ 100 ग्राम
3- काला तिल 100 ग्राम
4- गूगल 100 ग्राम
5- फल
6- फूल ,माला
7- मिठाई
8- एक सूखा नारियल ड्राई फूड वाला गोला पूर्णाहुति के लिए, एव एक जटा वाला नारियल जिसमें पानी हो,
9- धूपबत्ती, माचिस
10- कपूर,दही, शहद, आम का पत्ता
“घर का सामान”
1- चार कटोरी ,चार चम्मच
2- एक लोटा
3- चार प्लेट
4 -एक दीपक
5 – एक बड़ा कटोरा।
6 – माचिस।
1-हवन कुंड
2-समिधा
3-हवन सामग्री
4-रोली
5-मोली